रांची: झारखंड में विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही राजनीतिक दलों के बीच सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। अब चुनावी प्रचार का मुख्य आधार सोशल मीडिया बन चुका है, जहां दल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं। इस आभासी जंग में मुद्दे और एजेंडे के साथ-साथ स्थानीयता, धर्म और भाषा की मान्यता जैसे विषय भी छाए हुए हैं।
इंडिया गठबंधन का हमला
इंडिया गठबंधन ने सरना धर्म को मान्यता न देने का मुद्दा उठाते हुए केंद्र सरकार पर जोरदार हमला बोला है। झामुमो के नेता लगातार सोशल मीडिया पर एनडीए से सवाल कर रहे हैं कि यदि उन्होंने राज्य से सरना धर्म को मान्यता देने की अनुशंसा केंद्र को भेजी है, तो मोदी सरकार ने इसे क्यों नहीं स्वीकार किया। यह मुद्दा आदिवासी वोट बैंक को साधने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
एनडीए का जवाब
वहीं, एनडीए गठबंधन भी चुप नहीं है। वह झामुमोनीत सरकार पर भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे को उठाकर राज्य की जनसंख्या को प्रभावित करने के प्रयासों पर निशाना साध रहा है। इसके अलावा, वे परिवारवाद के मुद्दे पर इंडिया गठबंधन की नीतियों की आलोचना कर रहे हैं।
स्थानीयता और भाषा का मुद्दा
भाषाओं की मान्यता को लेकर भी सभी दल सक्रिय हो गए हैं। भाजपा में शामिल पूर्व मुख्यमंत्री ने हाल ही में हो भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग उठाई है, जबकि झामुमो ने हेमंत सोरेन की चिट्ठी वायरल कर दी है, जिसमें केंद्र को हो भाषा को मान्यता देने की अनुशंसा भेजी गई थी। यह मुद्दा भी आगामी चुनावों में अहम साबित हो सकता है।
महिलाएं भी राजनीतिक समीकरणों में
इंडिया गठबंधन मंईयां सम्मान योजना को राज्य की महिलाओं के लिए क्रांतिकारी बताते हुए भाजपा पर हमलावर है। उन्होंने दावा किया है कि यह योजना झारखंडी अस्मिता की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही, केंद्र सरकार पर जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का भी आरोप लगाया जा रहा है।
चुनावी रणनीतियों की तैयारी
चुनावी रणक्षेत्र में उतरने से पहले सभी दल सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर जनता को अपनी बात समझाने में जुटे हुए हैं। एक ओर जहां भाजपा आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए स्थानीय मुद्दों पर जोर दे रही है, वहीं इंडिया गठबंधन धर्म और भाषा के नाम पर जनता का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि इन मुद्दों का क्या असर चुनावी परिणामों पर पड़ेगा।
निष्कर्ष
झारखंड की सियासत अब सोशल मीडिया के जरिए नए रंग में रंगी हुई है। चुनावी माहौल गरमाया हुआ है, और राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का खेल तेज हो गया है। आगामी चुनावों में कौन सी पार्टी अपने मुद्दों को जनता तक पहुंचाने में सफल रहेगी, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन चुनावी रणनीतियों में सोशल मीडिया की भूमिका अहम साबित हो रही है।
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